मैं माटी अंव छत्तीसगढ़ के,
बीर नरायन बीर जनेंव।
कखरो बर मैं चटनी बासी,
कखरो सोंहारी खीर बनेंव।।
कतको लांघन भूखन ल
मोर अंचरा मा ढांके हंव।
अन्न ल खाके गारी दिन्हे,
उहू ल छाती मा राखे हंव।।
लुटत हे अब बैरी मन हा,
जौन पहुना बनके आए रिहिन।
झपट के आज मालिक बनगे,
जौन मांग के रोटी,खाए रिहिन।।
उठव दुलरवा इही बेरा हे,
अपन अधिकार नंगाए बर।
भीर कछोरा रंन मा कूदव,
क्रान्ति के दीया जलाए बर।।
आंसू पोंछव महानदी के,
लाल रकत, मुरमी म पटावत हे।
नाश करव इन भस्मासुर के,
जौन, गरीब के लहू मा अघावत हे।।
राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो नं 9340434893
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
बहुत बढ़िया भाव साहू जी?????